वानर राजा सुग्रीव ने सीता माता को ढूंढने के लिए अंगद (वाली पुत्र ) और हनुमान के नेतृत्व में एक वानर दाल को दक्षिण की ओर भेजा । वे समुद्र तट को पहुँचते हैं और वहां जटायु के भाई सम्पाती से मिलते हैं । सम्पाती अपने दूरदृष्टि से यह पता करते हैं कि माँ सीता लङ्का में ही हैं और लङ्का पहुँचने के लिए १०० योजन की दूर को पार करना है । सारे वानर चिंताग्रस्त हो गए क्योंकि १०० योजन दूर समुद्र को पार करना असंभव लग रहा था । तब जाम्बवान ने हनुमान जी से यह कहा की वे असल में बहुत शक्तिशाली है और केवल वे ही समुद्र लंघन करके लंका जा सकते हैं । इसे सुनकर पवनतनय आनंदित हुए और समुद्र लंघन के लिए तैयार हुए । उन्होंने अपने स्वरुप को बढ़ाया और समुद्र के इस पार से कूदे ।
इस पार से कूदने के पश्चात् और लंका पहुँचने के पहले उन्होंने तीन बाधाओं का सामना किया । प्रथम बाधा थी मैनाक पर्वत जो बीच रास्ते में आके उनसे विश्राम करने कि विनती की । लेकिन हनुमानजी ने साफ इन्कार कर दिया और बोला की अपने काम को पूरा किये बिना वो आराम नहीं कर सकते हैं । लेकिन उस पर्वत को तृप्त करने के लिए उन्होंने अपने हाथों से छुआ और बोला कि उनका विश्राम हो गया । यहाँ हनुमानजी ने अपने विनम्रता से बाधा को पार किया ।
दूसरी बाधा थी नागमाता सुरसा जिसने वायुपुत्र से कहा कि तुम मेरे मुँह के अंदर जाओ क्योंकि मैंने ब्रह्मदेव से वर पाया है कि जो भी इस दिशा जो भी जाता है, उसे मेरे मुँह के अंदर जाना है । तब हनुमान जी अपने आप को बहुत बड़ा बनाते हैं, और उसे देखकर सुरसा भी अपने मुँह को उतनी ही बड़ी बनाती है । उसके बाद हनुमान जी अपने आप को बहुत छोटा करके उसके मुँह के अंदर जाते हैं और तुरंत बाहर वापस आ जाते हैं । ऐसे करके उन्होंने न केवल अपने आप को बचाया पर सुरसा कि वरदान को भी पूर्ति किया । यहाँ वे अपने बुद्धि चातुर्य / चतुरता से बाधा को पार किया ।
तीसरी बाधा थी राक्षसी सिंहिका जो वायुपुत्र को पकड़के खाने की कोशिश करती है । हनुमान जी उसके मुँह के अंदर घुस जाते है और अपने अपने बल से उस राक्षसी के शरीर को फाड़ते हुए बहार आते हैं । यहाँ वे अपने भुजपराक्रम (अपने शक्ति ) से बाधा को पार करते हैं ।
देवता, यक्ष, किन्नर, गन्धर्व, विद्याधर इत्यादि हनुमान जी कि कि इन पराक्रमों को देखते हुए उनकी प्रशंसा करते हैं । तब उनके मुँह से यह वाणी निकलती है जिसमे एक बहुत गहरी सोच छुपा हुआ है । वह श्लोक है :-
यस्य त्वेतानि चत्वारि वनरेन्द्र यथा तव ।
धृति: दृष्टि: मतिः दाक्ष्यं स कर्मसु न सीदति ।।
"जिसके पास, तेरे जैसे, यह चार है -
धैर्य, दृष्टि, बुद्धि और काम में निपुणता,
वह कभी काम में विफल नहीं होता"
इस श्लोक में दिए गए ४ गुणों को ज़रा ध्यान से देखेंगे तो हमें बहुत कुछ समझने को मिलता है ।
धृतिः - यह धृति शब्द के धैर्य, धीरता आदि अर्थ होते हैं । हर काम करने के लिए, सरे कठिनाईयों को सँभालने की , झेलने की धैर्य की आवश्यकता है । वरना हम आधे में ही काम को छोड़ देंगे ।
दृष्टिः - काम में सफलता पाने के लिए हमें हमेशा मुकाम की दृष्टि होनी चाहिए । आज के IT सेक्टर वाली अंग्रेजी में बोले तो vision होनी चाहिए । हमें पहले यह तय करना है की आखिर मुकाम है क्या ? जब मुकाम की दृष्टि(नज़र) है तभी हम उसकी ओर प्रगति कर सकते हैं ।
मतिः - चतुराई / चातुर्य। कड़ी परिश्रम के साथ-साथ हमें चतुराई का भी उपयोग करना है। हमें इस बात पे ध्यान देना है की काम को कैसे आसानी से निपटा जाए । आजकल इसे ही हम "smart work instead of hard work " करके कहते हैं।
दाक्ष्यं - निपुणता /निपुण होना (अंग्रेजी में Dexterity ) । हर काम में सफलता पाने के लिए हमें उस काम के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। उदाहरण के लिए अगर हमें किसी परीक्षा में उत्तीर्ण होना है तो हमें उस परीक्षा के विषय का पूरी जानकारी होनी चाहिए। सिर्फ धैर्य और बुद्धि से हम काम चला नहीं सकते है। हमें थोड़ा तो ज्ञान अवश्य होनी चाहिए।
संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि एक काम को शुरू करने के पहले हमें यह तय करना है की मुकाम आखिर क्या है। तभी हम उस मुकाम के मुताबिक़ तैयार हो सकते हैं। उसके बाद उस काम को करने के लिए जो भी सीखना है, उसे सीखना चाहिए। वैसे सीखके थोड़ा तो "expertise" पाना है। उसके हमें हमें पूरे लगाव से उस काम को करना है। उस काम को संपूर्ण करने के लिए धैर्य के साथ सारे बाधाओं व कठिनाइयों का सामना करना चाहिए। जहाँ जहाँ हो सके , वहाँ वहाँ बुद्धि का उपयोग करके जितनी जल्दी हो सके , उतनी जल्दी से काम निपटाना है।
इस श्लोक से हमें यह पता चलता है कि हनुमानजी इन चार गुणों से सम्पन्न थे। इसी वजह से शायद एक अकेला वानर न केवल माँ सीता से मिलता है, पर सारे लंका का दहन करके वापस लौटता है 😊। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं करके हनुमानजी से प्रार्थना करते हैं।
उस महान बजरंगबली हमें ढेर सारे बल बुद्धि और विद्या दें, ताकि हम हर काम में सफलता पाएं।